माफीनामा (कविता-2) Maafinama-poem-2
हे प्रिय तुम अब तक न आएमैं बैठा, लिए एक आशा हूं इस बार स्वाती भी न बरसामैं अब तक […]
हे प्रिय तुम अब तक न आएमैं बैठा, लिए एक आशा हूं इस बार स्वाती भी न बरसामैं अब तक […]
प्रेम करु तुमसे अन्नतहारा ह्रदय हारा हू मन मेरे हिय में स्वयं की तस्वीर सोचा हैमेरे मन मंदिर में तू
कल रात मेरे दरवाजे को एक खुश्बू छूकर गुजर गई वीरा था दिल का चमन, वो महका कर गुजर गई
वह चाहते हैं मैं करू इजहार , ये मुमकिन तो नही प्रेम है, ठीक हैं,ये अलग बात हैं उनके तरफ
तेरी आने की खुशी में ये दिल दोबाला धड़कता हैकभी यूं भी, कभी यूं भी ! तेरे जाने का गम
आधी रात बैठा शहर की रोशनी देखता हूंअपने शहर होता तो घर गया होता ! सोचता हूं यू ना होता
मै चाहता हू, तूझसे कभी ना मिलुमैं बस एक भरम हु,तेरे काबिल नही तुम हो एक सुंदर रचना कोई किताब
मै चाहता हू, तूझसे कभी ना मिलुमैं बस एक भरम हु,तेरे काबिल नही तुम हो एक सुंदर रचना कोई किताब
हे प्राणप्रिये हे प्राणप्रियेसुनले हृदय की पीर प्रिये कितनी बतिया हैं कह डारीकितनी कहनी शेष हैंमेरे हिय की स्पंदन सुनतू