
हे प्रिय तुम अब तक न आए
मैं बैठा, लिए एक आशा हूं
इस बार स्वाती भी न बरसा
मैं अब तक प्यासा हूं
मेरी गलती इतनी भी क्या
जो तुम हठ किए बैठे हो
मेरी पीड़ा स्वयं से पूछ
जो मुंह छुपाए बैठो हो
एक बार तो सामने आ
देख, लिए हुऐ कितना निराशा हूं
इस बार स्वाती भी न बरसा
मैं अब तक प्यासा हूं
रात दिन तेरी धुनी रमाऊ
तुम्हे याद करु, नाम पुकारू
यादों में जो तेरा एक मंदिर है
वहीं रोज तुम्हारे चरणों में फूल चढ़ाऊ
अब तो मुझे तुम क्षमा करो
मैं बैठा,लिए एक अभिलाषा हूं
इस बार स्वाती भी न बरसा
मैं अब तक प्यासा हूं