विरह की कविता

वह चाहते हैं मैं करू इजहार , ये मुमकिन तो नही

प्रेम है, ठीक हैं,ये अलग बात हैं

उनके तरफ से हां हो, ये मुमकिन तो नही

तजुर्बा ही सीखती है जिंदगी जीने का हुनर

हर जंग में जीत हो, ये मुमकिन तो नही

सम्मान, दया, करुणा ये खजाने है जीवन के

हर किसी को हो ये नसीब, ये मुमकिन तो नही

उनका करू इंतजार,ये हंसी किस्मत हैं मेरी

कोई मेरा भी करे इंतजार, ये मुमकिन तो नही !!

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