कविता

मै चाहता हू, तूझसे कभी ना मिलु
मैं बस एक भरम हु,तेरे काबिल नही

तुम हो एक सुंदर रचना कोई किताब जैसी
तुझे कैसे पढू, मेरे पास वो सउर नही

बहुत लंबा है फासला सोच से उम्र तक
मेरे पास तेरे लिए कांटो के सिवाय कुछ नहीं

तेरे जो भी है सपने तू उसे पूरा कर
मैं एक खोया हुआ रहगुजर हु, मंजिल नहीं

तेरीपरछाई है ऐसी, मैं भी खुद को खूबसूरत समझता हु
तुम सौंदर्य का दर्शन, मै कुरूपता से ज्यादा कुछ नहीं

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