आधी रात बैठा शहर की रोशनी देखता हूं
अपने शहर होता तो घर गया होता !
सोचता हूं यू ना होता तो अच्छा होता
घर का बड़ा ना होता तो अच्छा होता
गर मैं होता मां के पास तो अच्छा होता
मका के एक कमरे में मेरा भी बिस्तर होता
जहा मां उठाती मुझे डांटकर
सूरज आ गया सर पर, पापा गए खेत पर
काश मैं वही कही रोजगार कर लिया होता
अपने शहर होता तो घर गया होता !
यहां अपनी परेसानिया बताऊं किससे
मेरे हिस्से मे ऐसा कोई यार नही
अपने मन की बात, किससे कहूं
जो मुझे समझे ऐसा कोई पास नही
काश कुछ महत्वकांक्षाए कम कर लिया होता
अपने शहर होता तो घर गया होता !
ढलता सूरज कभी ना देख पाया
चांद देखे तो जमाने हो गए
वक्त की कद्र करू तो कितनी करू
कई दिल के रिश्ते पुराने हो गए
काश कच्चा पक्का ही सही किसी को अपना बना लिया होता
अपने शहर होता तो घर गया होता !!